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                                       जीएसटी से संबंधित सभी शिकायतों का समाधान:-   जीएसटी पोर्टल पर बढ़ती कंप्लेंट को देखते हुए सरकार ने अब एक बड़ा प्लेटफॉर्म बनाया है, जो जीएसटी पोर्टल पर हेल्पडेस्क की जगह की जगह लेगा। जीएसटीएन ने एक कंप्लेंट सेल बनाई है, जहां पर जीएसटी से संबंधित सभी शिकायतों को दूर किया जाएगा। नए सिस्टम के बाद कारोबारियों की प्रॉब्लम का सॉल्यूशन कम समय में किया जाएगा।   बढ़ रहीं थी जीएसटी पोर्टल पर शिकायतें जीएसटी पोर्टल के अधिकारी ने बताया कि वेबसाइट पर शिकायत करने के तरीके को बेहतर किया गया है। अभी तक हेल्पडेस्क के लिए ई-मेल आईडी बनाया हुआ था जिस पर सारी शिकायतें आ रही थी। शिकायतों का फ्लो बढ़ने के कारण जीएसटी पोर्टल पर ही कंप्लेंट सिस्टम को बेहतर किया गया है। अभी कारोबारी और ट्रेडर्स सीधे जीएसटी पोर्टल की वेबसाइट पर शिकायत कर सकते हैं।    पहले बना था हेल्पडेस्क अभी तक किसी भी समस्या के लिए हेल्पडेस्क बना हुआ था जहां ट्रेडर्स और कारोबारी शिकायत कर सकते थे। पर ई-मेल करने का ऑप्शन था लेकिन अब ई-मेल बंद कर दिया गया है। इसके बदले नया शिकायत सिस्टम शुरू

इनकम टैक्स,प्रॉपर्टी,TDS, कैपिटल गेन सम्बंधित आपके Question एंड Answer ,



             आपके प्रश्न --इनकम टैक्स
                    


प्रश्न 1 -  मेरे द्वारा कुछ समय पूर्व एक मकान बेच कर दूसरा मकान खरीदा गया ।जब मेरे द्वारा अपनी इनकम टैक्स रिटर्न फाइल की गई तो उसमें कैपिटल गेन संबंधी कैलकुलेशन नहीं दिखाई गई । इनकम टैक्स विभाग से मुझे इस रिटर्न के लिए स्क्रूटनी का नोटिस प्राप्त हुआ ।स्क्रूटनी का नोटिस प्राप्त होने के बाद मैंने अपनी इनकम टैक्स रिटर्न को धारा 1 3 9 (5) के तहत रिवाइज करते हुए कैपिटल गेन के तहत धारा 54 की छूट क्लेम कर ली ।इस संबंध में निम्न दो बातों को स्पषट कीजिये -
1. क्या धारा 1 4 3 (2) के तहत स्क्रूटनी का नोटिस जारी होने के उपरांत धारा 1 3 9 (5) के तहत  रिटर्न रिवाइज की जा सकती हैं ?
2. क्या धारा 54 ( कैपिटल गेन सम्बन्धी ) छूट की जो मूल रिटर्न में क्लेम नही की गई हैं,उसे रिवाइज रिटर्न में क्लेम किया  जा सकता हैं ?

उत्तर :- धारा 1 3 9 (5) में कही इस आशय की पाबन्दी नही हैं कि स्क्रूटनी का नोटिस जारी होने के उपरांत रिटर्न रिवाइज न की जा सकती हो। इस प्रकार आपने सही रूप से रिटर्न रिवाइज की हैं । धारा 54 या 139 (5)  में इस प्रकार की कोई शर्त नही हैं कि कैपिटल गेन संबंधी छुट क्लेम न की जा सकती हो।
हाल ही में माननीय मुंबई ट्रिब्यूनल द्वारा  दिनांक 20:06:2018 को Mahesh H. hinduja vs income tax officer (ITA No.176/mum/2017 ) में इन्ही तथ्यों पर फैसला  देते हुए लिखा की There is no fetters imposed इन section 1 3 9 (5) that it can not be filed after issuance of notice under section 1 4 3 (2).


प्रश्न 2 :- हमारे द्वारा पिछले कई वर्षों से हॉस्पिटल चलाया जा रहा हैं। हॉस्पिटल में ऑपरेशन थियेटर के लिए लगभग  10 वर्ष पूर्व कुछ इक्विपमेंट लिए गए थे ।इन इक्विपमेंट का काफी वर्षो तक उपयोग करने तथा आपरेशन की तकनीक में तेज़ी से परिवर्तन आने के कारन ये इक्विपमेंट अब usable नहीं रहे । यहाँ तक की इन्हें सेकेंडहैंड के रूप में बिलकुल कम कीमत पर भी कोई नही खरीदता । इस कारण हमारे द्वारा पिछले 10 वर्षों का डेप्रिसिएशन घटाने के बाद जो वैल्यू बुक्स ऑफ़ एकाउंट्स में आ रही थी उसे हमारे प्रॉफिट एंड लोस अकाउंट में खर्चे के रूप में ट्रांसफर कर दिया ,यानि इन्हें writeoff कर दिया ।क्या यह खर्चा allowable expenditure माना जायेगा ?
उत्तर :- माननीय बॉम्बे हाइकोर्ट द्वारा एक केस में यह फैसला दिया गया हैं कि जहा किसी हॉस्पिटल द्वारा काफी वर्षो से किसी इक्विपमेंट्स को प्रयोग करने के बाद उसकी उपयोगिता पूर्ण रूप से समाप्त हो जाने से उसे प्रॉफिट एंड लोस अकाउंट में राईट ऑफ किया जा सकता हैं ।इस केस में माननीय हाइकोर्ट ने हॉस्पिटल के पक्ष में फैसला देते हुए लिखा की- "Assessee a charitable trust running hospital ,claimed additional depreciation only for purpose of writting off the value of assests on hospitals equipments which had completed usefulness of 10 years.Assessee could not sell the hospital equipments as scrap nor the assessee cold use the hospitals equipments.Therefore the written down value of the hospital equipments.was to be allowed as depreciation."
इस केस में माननीय हाइकोर्ट में  यह भी निर्णय दिया गया कि खर्चा किस नाम से प्रॉफिट एंड लोस एकाउंट्स में डेबिट किया गया हैं यह इतना महत्वपूर्ण नही हैं।बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि खर्चे की नेचर क्या हैं। इस केस में हॉस्पिटल द्वारा इक्विपमेंट्स की जो WDV थी उसे प्रॉफिट एंड लोस एकाउंट्स में डेप्रिसिएशन के नाम से ट्रांसफर किया।जबकि वास्तव में इस केस के पीछे की मूल भावना यह थी की अब इन इक्विपमेंट्स का जीवन पूरा हो चूका हैं तथा इनका उपयोग नई तकनीक के कारण संभव नही हैं। इस कारण इसकी बची हुई वैल्यू को खर्च खाते में डालकर राईट ऑफ कर दिया जाये ।माननीय हाइकोर्ट ने लिखा - Nomenclature could not decide a claim,in any case,this could also be allowed as expense u/s 371(1) as it was an expenditure incurred wholly and exclusively carrying out it activity as a hospital.
                                 




प्रश्न -3:-हमारे द्वारा कुछ वर्ष पूर्व फैक्ट्री में कुछ जोबवर्क ठेके पर करवाया गया। ठेकेदार द्वारा हमे 30 मार्च को अपना बिल दिया। इस बिल को हमने अपनी बुक्स में 30 मार्च को एंटर कर लिया। इसका भुगतान हमारे द्वारा अगले वितीय वर्ष में 20 जून को किया गया। हमारे द्वारा TDS 30 मार्च के हिसाब से न काटकर 20 जून के हिसाब से कटा गया। इस कारण 31 मार्च को समाप्त हुए वर्ष में स्क्रूटनी का फैसला करते समय यह खर्चा इनकम टैक्स एक्ट की धारा 40(a)(ia) के तहत disallow कर दिया गया ।हमे उस समय यह राय मिली की जहा खर्चा Payable हो वहा धारा 40(a)(ia) लागू नही होती। इस बारे में अपनी राय दे ।?
उत्तर :- पिछले कुछ वर्षो से विभिन्न न्याय निर्णयों में यह बिंदु तय हुआ की धारा 40(a)(ia) वहा भी लागू होगी जहा खर्च paid नही किया गया,यानि खर्च अभी Payable हैं।ऐसे में व्यापारी को यह ध्यान रखना हैं कि जिस समय खर्चे का जमा खर्च किया गया हैं उसी समय TDS काट लिया जाये । हाल ही में विशाखापट्नम ट्रिब्यूनल द्वारा ACIT. VS The gunture co-operative Central bank(2018) 193 TTJ 870 के केस में यह फैसला दिया की- "The world 'Payable' occurring in section 40(a)(ia) not only covers cases where amount is yet to be paid but also the cases where amount has actually been paid.Therefore,disallowance made by AO was justified."

प्रश्न -4 :- मेरे द्वारा एक प्रॉपर्टी बेचीं गई हैं। इस प्रॉपर्टी को बेच कर मैं अन्य रिहायशी प्रॉपर्टी खरीदना चाहता था लेकिन suitable house प्रॉपर्टी उस समय नहीं मिल पाई। मेरे द्वारा गलती से यह रकम कैपिटल गेन अकाउंट स्कीम में जमा करवाने की बजाय बैंक में अपने खाते में जमा करवा दी। क्या बैंक में जमा करवाई गई इस रकम के सम्बन्ध में मुझे धारा 54 में कैपिटल गेन में छूट प्राप्त हो जायेगी ?
उत्तर :- नहीं,धारा 54 में यह स्पष्ट रूप से अंकित हैं कि आपके द्वारा निश्चित समयावधि में रिहायशी मकान नही खरीदा जा सका तो आप इस रकम को बैंक में एक अलग अकाउंट जो की कैपिटल गेन स्कीम अकाउंट के तहत हो उसमे जमा करवाये। चूँकि आपके द्वारा रकम कैपिटल गेन अकाउंट स्कीम में जमा नही करवाई बल्कि साधारण बैंक खाते में जमा करवाई हैं ऐसे में आपको कैपिटल गेन के सम्बन्ध में आपको धारा 54 की छूट का लाभ नही मिल पाएगा ।
माननीय मुम्बई ट्रिब्यूनल द्वारा kapil Rajkumar jain vs ITO के केस के सम्बन्ध में दिनांक 13:03:2018 को यह फैसला दिया गया हैं कि- Amount deposited with a Bank did not fall within the purview of capital gains Accounts Scheme,Therefore,AO, had rightly denied deduction under section 54.

प्रश्न 5:- मेरे द्वारा अपने बैंक खाते में से लगभग दो लाख रूपये निकलवाये।कुछ महीनो बाद मेने अपने बैंक खाते में दो लाख रूपये वापिस जमा करवाये । मेरे केस की स्क्रूटनी के दौरान जो रकम मेरे द्वारा बैंक में जमा करवाई गई उन एंट्रीज का Source पूछा रहा हैं।क्या बैंक से निकलवाई गई रकम कुछ माह बाद वापिस बैंक में जमा करवाई जा सकती हैं ?
उत्तर :- यह मामला केस की परिस्थियों पर निर्भर करता हैं,इसे समझने के लिए माननीय delhi  हाइकोर्ट द्वारा jya agarwal vs ITO 302 CTR( Del) 241
केस को पॉइंटवाइज देखते हैं :-
(A) करदाता का केस बैंक में कैश डिपाजिट के आधार पर स्क्रूटनी में लिया गया  ।
(B) करदाता द्वारा 02:05:1997 को अपने बैंक से दो लाख रूपये नगद निकाले गए।
(C) करदाता द्वारा 13:01:1998 को अपने बैंक खाते में 1.60लाख रूपये नगद जमा करवाये गये।
(D) करदाता का कहना था कि उसका प्रोपर्टी लेने का विचार था और जब प्रोपर्टी का सौदा करना होता हैं तो कुछ रकम एडवांस में देनी होती हैं इस उद्देश्य से मई माह में रकम निकली गई । करदाता कई माह तक प्रॉपर्टी खरीदने का प्रयास करता रहा लेकिन बात नही बनी। अंत में उसके द्वारा दो लाख रूपये में से 1.60 लाख रूपये वापिस जमा करवा दिए गए।
(E) ITO महोदय का कहना था कि रकम निकलवाने व  जमा करवाने के बीच में सात माह का अंतर हैं तथा कोई भी समझदार व्यक्ति सात माह तक बड़ी रकम कैश में नही रखेगा। इस कारण करदाता द्वारा जो जवाब दिया गया हैं वो महज एक स्टोरी लगती हैं ।इस आधार पर ITO महोदय ने इनकम टैक्स एक्ट की धारा 68 के तहत एडिशन कर दिया । प्रथम अपील में कमिसनर महोदय द्वारा  भी करदाता की अपील को ख़ारिज कर दिया गया।
(F) माननीय हाइकोर्ट ने करदाता के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि - Explanation given was not fanciful or sham story.it was perfectly possible and should be accepted.unless there was justification and ground to hold to the contrary. Due regard and latitude to human conduct  and behaviour has to be given and accepted when one considers validity and truthfulness of an explanation. One should not consider and reject an explanation as conducted and contrived by applying prudent man's behaviour test.Assessment order and the appellate orders fell foul and head and disregarded the preponderance of probability test thus. Addition was deleted.
इस प्रकार जहा करदाता यह साबित कर देता हैं की जो रकम बैंक में नगद जमा करवाई गई हैं वह पूर्व में नगद निकाली गई थी वहा धारा 68 का एडिशन नहीं बनता।

प्रश्न 6:- हमारे द्वारा हॉस्पिटल में कुछ स्टाफ को कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर रखा गया हैं।इनको जो पेमेंट दी गई उस पेमेंट पर हमने इनकम टैक्स एक्ट की धारा 1 9 4 C के तहत 1 % की रेट से TDS काटा । इस केस की स्क्रूटनी के दौरान AO महोदय का कहना हैं कि आपके द्वारा जो कॉन्ट्रैक्ट बेस पर प्रॉफेसनल स्टाफ रखा गया हैं उस पर इनकम टैक्स एक्ट की धारा 1 9 4 जे के तहत 10 % की रेट से TDS काटा जाना चाहिए था । इस कारण आपने  जो कॉन्ट्रैक्ट बेस पर रखे गए प्रॉफेसनल स्टाफ  को भुगतान किया हैं वह इनकम टैक्स एक्ट की धारा 40 (a)(ia) के तहत Disallow हो जायेगा । इस विषय पर कानूनी स्थति क्या हैं ?
उत्तर :- इनकम टैक्स एक्ट की धारा 40 (a)(ia) कहती हैं कि जो व्यापारी TDS के दायरे में आता हैं                
उसकी यह ड्यूटी है कि इनकम टैक्स एक्ट के तहत जिन मदो पर TDS काटा जाना हैं उन मदो का भुगतान यदि कंपनी द्वारा किया जाना हैं  तो उस पर नियमानुसार TDS काट कर जमा करवाया जाए। यदि ऐसा नही किया जाता तो यह खर्चा Allow नही होता । पूर्व में यह सारा खर्चा Disallow हो जाता था । वर्तमान में यह केवल 30 प्रतिशत ही Disallow होता हैं। इनकम टैक्स कानून में  TDS के सम्बन्ध में वर्तमान में दो महत्वपूर्ण स्थति हैं-  पहली Non deduction of Tax, व दूसरी Short deduction of Tax.आपके केस में  आपके द्वारा सद्भाविक रूप से एक सेक्शन की बजाय दूसरे सेक्शन में TDS काट लिया गया हैं। इसके साथ-साथ कोई TDS धारा 1 9 4 C में कवर होता हैं  या 1 9 4 J में यह एक डीबेट का विषय हैं । विभिन्न ट्रिब्यूनल द्वारा यह फैसला दिया जा चूका हैं  की शार्ट डिडक्शन मामलो में धारा 40(a)(ia) लागु नही होती ।

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