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                                       जीएसटी से संबंधित सभी शिकायतों का समाधान:-   जीएसटी पोर्टल पर बढ़ती कंप्लेंट को देखते हुए सरकार ने अब एक बड़ा प्लेटफॉर्म बनाया है, जो जीएसटी पोर्टल पर हेल्पडेस्क की जगह की जगह लेगा। जीएसटीएन ने एक कंप्लेंट सेल बनाई है, जहां पर जीएसटी से संबंधित सभी शिकायतों को दूर किया जाएगा। नए सिस्टम के बाद कारोबारियों की प्रॉब्लम का सॉल्यूशन कम समय में किया जाएगा।   बढ़ रहीं थी जीएसटी पोर्टल पर शिकायतें जीएसटी पोर्टल के अधिकारी ने बताया कि वेबसाइट पर शिकायत करने के तरीके को बेहतर किया गया है। अभी तक हेल्पडेस्क के लिए ई-मेल आईडी बनाया हुआ था जिस पर सारी शिकायतें आ रही थी। शिकायतों का फ्लो बढ़ने के कारण जीएसटी पोर्टल पर ही कंप्लेंट सिस्टम को बेहतर किया गया है। अभी कारोबारी और ट्रेडर्स सीधे जीएसटी पोर्टल की वेबसाइट पर शिकायत कर सकते हैं।    पहले बना था हेल्पडेस्क अभी तक किसी भी समस्या के लिए हेल्पडेस्क बना हुआ था जहां ट्रेडर्स और कारोबारी शिकायत कर सकते थे। पर ई-मेल करने का ऑप्शन था लेकिन अब ई-मेल बंद कर दिया गया है। इसके बदले नया शिकायत सिस्टम शुरू

Rules Of Income Tax - नए फैसले इनकम टैक्स


                      नए फैसले - इनकम टैक्स


इनकम टैक्स में इस बार इससे संबंधित कुछ नए फैसले या नए नियम लागू किये गए हैं। जो अपनी इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते समय या पहले एक बार ध्यान से देख लेने बहुत आवश्यक हैं।


1 कंपनी द्वारा जो कमीशन पे किया गया हैं वह कमीशन शक के दायरे में होने पर क्या क्या बिंदु  साबित करने होंगे :- ACIT VS. Khaitan Electronics (2018) Taxpub (DT) 1844 : माननीय कलकत्ता ट्रिब्यूनल : इस केस में कंपनी द्वारा वर्ष के दौरान कई व्यक्तियों को कमीशन अदा किया गया था तथा इस कमीशन को व्यापारिक खर्चे के रूप में प्रोफिट एन्ड लोस अकॉउंट में डेबिट किया गया था।
इस कंपनी के केस की स्क्रूटनी के समय AO महोदय को यह शंका हुई की कंपनियों द्वारा जिन व्यक्तियों को कमीशन अदा किया गया हैं वास्तव में उन व्यक्तियों द्वारा कोई कार्य नही किया गया बल्कि कंपनी द्वारा अपनी इनकम को कम करने के लिए एवं सामने वाले व्यक्तियों की इनकम को बढ़ाने के लिए मात्र एंट्रीज के माध्यम से  कमीशन दिया हैं । इस पर AO महोदय द्वारा कर निर्धारण कार्यवाही के दौरान स्पष्टीकरण मांगा गया । कंपनी द्वारा अपने स्पस्टीकरण में निम्न मुख्य बिंदु बताये गये :-
१. कंपनी द्वारा जो कमीशन अदा किया गया हैं  वह अकाउंट पेयी चेक के माध्यम से किया गया हैं।
२. कंपनी द्वारा कमीशन पर TDS काट कर जमा करवाया गया हैं।
३. TDS सर्टिफिकेट भी  जारी किया गया हैं।
४. जिस व्यक्ति को कमीशन अदा किया गया हैं उस व्यक्ति द्वारा अपनी इनकम टैक्स रिटर्न में  कमीशन को अपनी इनकम में दिखाया गया हैं।
५. कंपनी द्वारा जिन व्यक्तियों को कमीशन अदा किया गया था  उनमे से कुछ व्यक्तियों को अन्य कंपनी से भी कमीशन मिला हुआ हैं।
उक्त डिटेल पेश करने के उपरांत AO महोदय ने इनमे से कुछ व्यक्तियों को  फ़ोन पर संपर्क किया तथा कुछ के पास व्यक्तिगत रूप से स्वयं /इनकम टैक्स इंस्पेक्टर को भेजा गया । जितने व्यक्तियों को कमीशन  दिया गया था उनमे से एक व्यक्ति का पता प्रॉपर नही था ,यानि जो पता एवं सम्पर्क नम्बर दिया गया था उसमें वह व्यक्ति मौजूद नहीं था । उस व्यक्ति से बाद में  जब संपर्क हुआ तो वह व्यक्ति इनकम टैक्स विभाग को यह सुचना नहीं दे पाया कि उसने कितना माल ख़रीदा या कितने माल के आर्डर दिए एवं किस रेट पर आर्डर दिए जिस कारण उसको कमीशन मिला है । इस आधार पर AO महोदय द्वारा कमीशन की राशि को फर्जी माना गया। तथा कमीशन की राशि disallow कर दी।
मामला माननीय ट्रिब्यूनल के समक्ष पहुंचा। माननीय ट्रिब्यूनल ने कंपनी के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि जाँच के दौरान यदि AO महोदय को कमीशन की राशि की वास्तविकता पर शक हैं तो इसे कमीशन प्राप्तकर्ता से भी प्रॉपर तरीके से जाँच करनी चाहिए थी । जहा तक कंपनी का प्रश्न हैं  उसके द्वारा कमीशन की वास्तविकता को साबित करने के लिए समुचित साक्ष्य पेश कर दिए। माननीय ट्रिब्यूनल ने कंपनी के पक्ष में  निर्णय देते हुए लिखा की :- "Assessee had made payment of commission by Account Payee cheque after deduction of tax at source and those commission agents had reflected commission income in their respective income tax returns.Those parties were in receipt of commission from various person other than the assessee.Hence, if at all there was any doubt, AO could verified  the same with concerned vendors to ascertain the varacity of the transections which was not done.Fact of randering of serviece by commission agents to the assessee has been proved beyond doubt and accordingly,assessee was eligible for deduction of commission expenditure."

2. सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट से प्राप्त  सुचना के आधार पर केस रिओपन किया जा सकता हैं :- Mircon infrastucture (P) Ltd. Vs. ITO (2018)Taxpub (DT)2232 : माननीय  मुम्बई ट्रिब्यूनल  : इस केस में  सेल्स टैक्स विभाग द्वारा किसी व्यापारी के यहाँ जाँच की गई। जाँच में पाया गया कि यह व्यापारी बोगस बिल्स जारी करने का काम करता हैं । इस व्यापारी के यहाँ जाँच के दौरान यह डाटा सेल टैक्स विभाग के हाथ में आ गया की इस व्यापारी द्वारा किस- किस व्यापारी को बोगस बिल दिये गए हैं,यानि किस किस व्यापारी ने अपने लाभ के लिए accomodation entries ली हैं। सेल टैक्स विभाग द्वारा इसकी गहराई से जाँच करके फाइनल डाटा इनकम टैक्स विभाग को  भी सौंप दिया। इस डाटा के आधार पर इनकम टैक्स विभाग द्वारा जिस व्यापारी ने बोगस खरीद के बिल लिए थे उसका केसर रिओपेन कर दिया। व्यापारी द्वारा इस बिन्दु पर आपत्ति की गई  की अन्य विभाग से प्राप्त सुचना के आधार पर इनकम टैक्स का केस रीओपन नहीं किया जा सकता । इस तर्क को AO महोदय द्वारा स्वीकार नहीं किया गया। मामला अपील में पहुंचा अपील में भी मामला कंपनी के विरुद्ध लिया गया। और यह कहा कि वर्तमान मामले के तथ्यों के अनुसार सेल टैक्स विभाग से प्राप्त सुचना के आधार पर इनकम टैक्स का केस रीओपन करने की कार्यवाही सही हैं। माननीय ट्रिब्यूनल ने लिखा की :-  "AO reopend case of assessee on accounts of information received investigation of wing of sale tax department that assessee was a beneficiary of an accomodation bills of purchases from certain bogus dealers.Assessee contended that merely on the basis of information received from sale tax department.it could not be construed that assessee was a beneficiary of such  bogus entries providers, so as to allow AO to reopen the assessment based on mere surmises.Tribunal held that,। Apparently tengibal and congent incrimineting meterial were received by AO,Which clearly showed that assessee was beneficiary of bogus purchases entries from bogus entry providers.The information show received by AO had live link with reason to believe that income has escaped  assessment.Thus reopening was justified."

3.कैपिटल गेन की डिडक्शन disallow करने पर पेनल्टी की क्या स्थति बनेगी:- नितिन कुमार देसाई  vs ACIT (2018)162 TR(A) 313:- इस केस में अहमदाबाद  ट्रिब्यूनल ने लिखा की  करदाता द्वारा शहरी  एग्रीकल्चर लैंड बेचने पर जो कैपिटल गेन हुआ उसे अन्य एग्रीकल्चर लैंड खरीदने में  इन्वेस्ट करने के आधार पर धारा 54 B की छूट  अपनी इनकम टैक्स रिटर्न में क्लेम की। इस रिटर्न की स्क्रूटनी के समय यह पॉइंट सामने आया की करदाता द्वारा जो नई कृषि भूमि में  इन्वेस्टमेंट किया गया हैं वो इन्स्टालमेन्ट में किया गया हैं,यानि नई कृषि भूमि के लिए जो पेमेंट की गई हैं वो एक साथ न करके किश्तों में की गईं हैं । AO महोदय ने इस केस का फैसला करते समय जितनी पेमेंट रिटर्न फाइल करने की ड्यू डेट तक अदा की उतनी पेमेंट की छूट दे दी गई।तथा शेष रकम बाबत धारा 54 B की छूट अस्वीकार कर दी। इसके बाद करदाता के खिलाफ धारा 271 (1)(c) की पेनल्टी इस आधार पर लगा दी की उसने इनकम टैक्स रिटर्न में गलत छूट क्लेम की हैं । करदाता ने पेनल्टी के आदेश के आधार पर अपील की । अपील में करदाता का यह कहना था कि  उसके द्वारा एक कृषि भूमि बेच कर दूसरी कृषि भूमि खरीद ली गईं। ऐसे में उसे इस बात का सद्भाविक विस्वास था कि इनकम टैक्स में ऐसी परिस्थति पर टैक्स नही लगता। और माननीय ट्रिब्यूनल द्वारा इस केस में करदाता के पक्ष में ही फैसला लिया गया। और करदाता के ऊपर लगाई गई पेनल्टी को डिलीट कर दिया गया। "Penalty was deleted."

4.Form 26 AS में आ रही इनकम एवं प्रॉफिट एन्ड लोस अकाउंट में आ रही इनकम  में अंतर होने पर इसे स्पष्ट करना होगा :- Maru health care(P) Ltd. Vs DCIT(2018) Taxpub(DT)1468:- माननीय जयपुर ट्रिब्यूनल द्वारा इस केस में कंपनी के 26AS में यह दिखाई दे रहा हैं कि कंपनी को कमीशन की इनकम प्राप्त हुई हैं जबकि प्रोफिट एंड लोस अकाउंट में कमीशन की इनकम इससे कम दिखाई हुई हैं। इस बाबत कंपनी से स्पष्टीकरण व Reconcilation statment माँगा गया । कंपनी द्वारा इस अंतर को स्पष्ट नही किया गया। ऐसे में AO महोदय द्वारा इस अंतर की राशि को  कंपनी की इनकम में जोड़ दिया । मामला अपील में ट्रिब्यूनल के समक्ष पहुंचा ।माननीय ट्रिब्यूनल द्वारा यह कहा गया की जहा करदाता फार्म 26 AS एवं प्रॉफिट एंड लोस  अकाउंट में आ रहे अंतर को स्पष्ट नहीं कर पाया  हैं वहा ऐसे अंतर का एडिसन जायज हैं। माननीय ट्रिब्यूनल ने लिखा:-"Assessee had not submitted any evidence,which could reconcile the diffrence between income the declared by the assessee in the Profit and lose account with 26 AS form.The onus was on the aasessee to explain the discrepancy.since the assessee had  failed to discharge primary onus with regard to explain the difference in the receipts  of the commission,therefore addition was justified."

NOTE:- वर्तमान नियमो के तहत  करदाता व उसके वकील/सी ए की यह ड्यूटी ह की  वह इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने से पूर्व  फॉर्म 26 AS को चेक कर लेवे। तथा 26 AS में जो इनकम एवं टीडीएस की रकम show हो रही हैं  से अपनी इनकम टैक्स रिटर्न से incorporate लेवे। यदि 26 AS में कोई गलत एंट्री show हो रही हैं या टीडीएस कम show हो रहा हो तो करदाता की यह ड्यूटी हैं कि वह सम्बंधित deductor से संपर्क करके उसे टीडीएस रिटर्न रिवाइज करने का निवेदन कर अपना 26 AS फॉर्म सही करवा लेवे। आजकल इनकम टैक्स की रिटर्न की प्रोसेसिंग के समय  सिस्टम  द्वारा 26 AS से मिलान किया जाता हैं। यदि मिलान नहीं होता तो Mismatch का नोटिस आ जाता हैं। अतः इस दिशा में विशेष सावधानी की आवश्यक्ता हैं।

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